Monday, 23 January 2017

छुट्टी


में आज एक गहरे चिंतन मे डूब गया था और वही मुझे बहुत बड़ा सत्य समझा रही थी जिसे में जान कर भी अनजाना बन रहा था l में एक अवसरप्राप्त उच्च पदस्थ सरकारी कर्मचारी था जिसकी उम्र ८५ पार  कर चुकी है l मेरी पत्नी को गुजरे १५ साल हो गए हैं पर इस घर को बनवाते समय उसके लगाए फूल और फलों के पेड़-पौधों से आने वाली खुशबू उसके आस-पास होने का एहसास कराती है l दोनों बेटे और एक बेटी दुसरे शहरों में अपनी –अपनी दुनिया में व्यस्त हैं l कभी –कभी सपरिवार मिलने आते हैं पर साथ रहते हैं हमेशा तो ये घर जो बड़े चाव से बनाया था रिटायरमेंट के बाद और वृधावस्था में होने वाली बिमारियों का आना जाना l जी बहुत उचटता हैं तो शाम को सोसाईटी के राम मंदिर चला जाता हूँ l अभी कुछ दिन पहले मंदिर में सत्संग चल रहा था जिसमे गीतासार समझाया जा रहा था l में भी जानता हूँ मृत्यु निश्चित है और खाली हाथ जाना ही है पर मन जैसे एक मोह से बंध गया था जिससे स्वयं को मुक्त नहीं कर पा रहा था l
एक महीने हुए पड़ोस के साहू जी के घर उनकी भतीजी छुट्टी मनाने आई हुई थी l ९ साल की प्यारी सी बच्ची जिसकी मीठी बातों और बाल सुलभ खेलों में शामिल होकर में खुद बच्चा बन गया था l वो रोज मेरे बगीचे में खेलने आती और ढेर सारी बाते करती l आज उसकी छुट्टी ख़त्म हो रही थी सो खेलने नहीं आई l मुझसे रहा नहीं गया तो खुद मिलने चला गया साहूजी के घर l देखा वह बड़े उत्साह के साथ अपना सामान बाँध रही थी l मैंने पूछ लिया –‘बेटे, तुम आज चली जायोगी तो हमें बहुत याद आओगी l तुम्हें नहीं लगता तुम यहाँ कुछ दिन और रुक जाती तो अच्छा होता l  उसने उसी सरलता से कहा- बड़े दादाजी ! मेरी छुट्टी तो फिक्स थी, पापा ने रिटर्न टिकट कटवा कर ही भेजा था तो एक दिन भी ज्यादा कैसे रहती? और जितने दिन यहाँ रही बहुत मज़े किये, बहुत सारी बाते जानी वो तो बताउंगी वहाँ जाकर सभीको l फिर छुट्टी का मज़ा तो इसलिए ही आता हैं क्योंकि हमें वापस अपने घर जाना होता है, हमेशा के लिए कहीं रह जाये तो वो छुट्टी मनाना थोड़े ही होता है l
 उसकी बातों में कितना बड़ा अर्थ छुपा था l गीता सार भी यही कहती हैं हमारा जन्म-मरण पूर्व निश्चित है, हमारे विधाता के हातों हमारी जीवन डोर बंधी होती है l बस कुछ समय के लिए संसार मे आते  हैं l फिर मैंने तो लगभग एक सुखी जीवन बिताया है तो और मोह क्यों रखना l जीवन को ख़ुशी –ख़ुशी विदाई दे तो ही जीवन का मज़ा है और जब तक हो दुसरों को ख़ुशी दो जैसे उस बच्ची ने l मन शांत हो गया और भय मुक्त, मोह मुक्त l जीवन के बहुत से संज्ञा/तुलनातमक नाम सुने थे जैसे ‘यात्रा’, ‘ग्राहक’, ‘रंगमंच के किरदार’ , ‘कहानी’ इत्यादि पर मुझे ‘छुट्टी’ सबसे सहज और अच्छा लगा  l
लेखिका- श्रीमती आर. सुनंदा चौधरी (साहू)


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2 comments:

  1. A VERY nice story indeed. Life is a vacational tour with fixed schedule to return back. To add philosophy to innocent
    behaviour of a child makes everything complicated. It's childlike
    simplicity that makes life enjoyable. To conclude philosophically,we may say, " Death is not an end, it's the perfection of life."

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  2. Sir thanks for reading and giving your feedback on it. actually I tried to show some very complicated things or facts can be understood from simple innocent activities of children. like never give up until you succeed can be learnt from a toddler who continues to stand and walk till inspite of several failures. it is his natural process of learning and growing but grown up sometime gives up after facing few failures.
    Anyway keep on reading my creations and give your comments it will be nice exchange of ideas and constructive critiques are best supporters. so thanks

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